आगामी  2022 विधानसभा चुनाव आनेवाले कुछ वर्षों के लिए, देश के 5 राज़्यों के राजनीतिक समीकरण को संतुलित करने में निश्चित तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं और इन चुनावों के बीच प्रचार-प्रसार के साथ-साथ हमारे राष्ट्रीय टीवी न्यूज़ चैनल भी से अपने लिए अधिक से अधिक टीआरपी कार्यक्रम और विज्ञापन-दाता जुटाने में पूर्ण रूप से सक्रिय हैं, जिसका अंदाज़ा पिछले एक वर्ष में हुई टीवी बहसों और सांप्रदायिक प्रोग्रामों से सीधे तौर पर लगाया जा सकता हैं।  

विगत कुछ वर्षों में, भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता जगत के कुछ चुनिंदा पत्रकारों की भाषा, विचारधारा और टीआरपी के लिए सांप्रदायिक खबरों का प्रचलन और धार्मिक मुद्दों पर बिन सर-पैर की बहस वाली शैली से हम सभी परिचित हैं। जो सीधे तौर पर इनकी कट्टर वादी मानसिकता और पक्षपाती पत्रकारिता को दर्शाता है। 

अप्रैल 2020 में नेटवर्क 18 के मुख्य चैनल, News18 की आधिकारिक वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित किया गया जिसमें इस्लामॉफ़ोबिक प्रचार के तौर पर इस्तेमाल किये जा रहे 8 वायरल और झूठे समाचारों की जांच की गयी | 

इस रिपोर्ट के ठीक 1साल 7 महीने बाद नेटवर्क 18 के ही दूसरे चैनल News18 India ने कुछ ऐसे ही वीडियो को अपनी ही एक समाचार बहस में दिखाया, जिसमें News18 इंडिया के एंकर अमन चोपड़ा ने #ThookJihad के नाम पर एक कार्यक्रम में अपनी बात को सही ठहराने के लिए इन फ़र्ज़ी वायरल वीडियो का प्रयोग किया | 

यदि आप अमन चोपड़ा और इनके जैसे अन्य कई पत्रकारों की खास साप्रंदायिक और धार्मिक नफरत फैलाने वाली शैली से वाकिफ नहीं हैं तो आप इनके वर्तमान न्यूज़ चैनलों पर चल रही खबरों और डिबेट कार्यक्रम का विश्लेषण कर सकते हैं।

अमन चोपड़ा हिन्दी टेलीविजन जगत के जाने-माने पत्रकारों की सूची में आते हैं, जो वर्तमान समय में News18India में कार्यरत हैं और इससे पहले 4 वर्षों तक Zee News के साथ काम कर चुके हैं और राजनीतिक खबरों और मुद्दो पर अच्छी पकड़ रखते हैं, जिसका भरपूर उपयोग वो अपने न्यूज़ शो में करते हुए दिखते हैं।

अगर हाल ही में हुई, अमन चोपड़ा की पिछली कुछ डिबेट कार्यक्रमों का विश्लेषण किया जाए तो इनमें से अधिकतर कार्यक्रमों की हेडलाइन्स और टैग लाइन्स पूरी तरह से एक विशिष्ट वर्ग समूह की विचारधारा के ऊपर केन्द्रित है, जिसमें आप अल्पसंख्यक वर्ग के खिलाफ फैलते हुए नफरती प्रोपेगेंडा को समझ सकते हैं। 

दूसरी तरफ अगर अन्य न्यूज़ चैनलों जैसे Zee News के कुछ 2021 से चलते कार्यक्रमों और डिबेट की तरफ नजर डाले तो उन कार्यक्रमों को देखते वक्त आप यह महसूस कर सकते हैं की किस तरीके से ये चैनल अपनी एक गैर-धर्मनिरपेक्ष मानसिकता को पिछले कुछ सालों से समाज के बीच फैलाने का कार्य कर रहें हैं।

Zee News ने 27 जून 2021 को अपने “ताल ठोक के” नामक कार्यक्रम में उत्तरप्रदेश के मुस्लिमों को टारगेट करते हुए एक हेडलाइन छापी थी “कुदरत बहाना है, मुस्लिम आबादी बढ़ाना है”

जिसमें इसी प्रोग्राम के एक ग्राफिक पोस्ट में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फोटो के विपरीत मौलाना और कुछ मुस्लिम युवकों को दिखाया गया था।

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इस प्रकार के कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य, आम जनता और सामान्य दर्शकों का ध्यान समाजिक मुद्दो की राजनीति से हटाकर धर्म के आधार पर वोट का परिवर्तन करना होता है, जिससे की समाज में बढ़ रहे राजनीतिक साप्रंदायिकता को आसानी से बढ़ावा मिलता है और लोग उस धर्म विशेष के प्रति अपने मन में नफरती भावना जागृत करने लगते हैं।

2022 के विधानसभा चुनाव के आधार पर देखे तो, उत्तरप्रदेश सभी अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक मतदाताओं वाला राज्य है,जिसके विधानसभा चुनाव परिणाम सीधे तौर पर आने वाले 2024 लोकसभा चुनाव को प्रभावित करेंगे, वर्तमान में उत्तरप्रदेश की जनसंख्या लगभग 24 करोड़ से अधिक हैं जिसमें 16 करोड़ हिन्दू और 4 करोड़ से अधिक मुस्लिम आबादी है, जो की उत्तरप्रदेश के भीतर दूसरा सबसे बड़ा धर्म हैं।

इसी हिंदू-मुल्सिम जनसंख्या समीकरण को मुख्य धारा की मीडिया सीधे तौर पर 80% हिन्दू बनाम 20% मुस्लिम वाली राजनीति का रूप देने का भरपूर प्रयास कर रही हैं, जो की आने वाले चुनावों में निश्चित तौर पर कुछ विशेष राजनितिक पार्टियों को सीधे तौर पर एक अच्छा-ख़ासा धार्मिक वोट बैंक तैयार करने में पूरी तरह कारगर हैं। 

आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो मुख्य धारा की मीडिया, देश में राजनितिक और साप्रंदायिक मुद्दो में घी डालने का काम कर रही है, जो आने वाले कुछ सालों में देश के लोकतांत्रिक स्वरुप को राजनीतिक निरंकुशता में बदलने में का भरपूर प्रयास  कर रहीं है,और वो दिन भी दूर नहीं जब इस प्रकार की सांप्रदायिक खबरें आपके चारों ओर के सामाजिक वातावरण में मोब लिंचिंग जैसी घटनाओं के पीछे का कारण बनेगी।

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