हिंदी कविता-भूख बनाम इश्तिहार | लेखक : हिमांक
भूख बनाम इश्तिहार वो खूबसूरत थीकिसी रंगीन पत्रिका की तरहपर उसकी आँखों में एक भूख थीभूख, जो खूबसूरती के बावजूददेह को हाथ फैलाने पर मजबूर कर दें वह किसी गवांर आदमी केसाथ शहर आयी होगीउसे शहर में जीने का सलीका नहीं आताइसलिए उसने चुना, चुपचाप हाथ फैलानामेट्रो टनल की सीढ़ियों परसरकारी इमारतों के नीचेघनी आबादी … Continue reading हिंदी कविता-भूख बनाम इश्तिहार | लेखक : हिमांक
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